एक बार एक गरीब किसान अपना घोड़ा बेचने गाँव से शहर की ओर आया। राह में चलते वक्त उसे एक कृष्ण का प्यारा मिला। उसने किसान से पूछा कि इस घोड़े को कहाँ लिये घूम रहे हो? किसान ने जवाब दिया कि साहिब में इसे शहर में बेचने जा रहा हूँ। कृष्ण के प्यारे ने कहा कि ये घोड़ा मैं खरीदना चाहता हूँ, मगर पहले मैं इस घोड़े पर बैठकर इसकी मजबूती और रफ्तार देखना चाहता हूँ। किसान ने घोड़े की लगाम उसके हाथ में दी और कृष्ण का प्यारा घोड़े की पीठ पर बैठकर थोड़ी दूर जाकर वापिस आया और उस घोड़े के दाम पूछे तो किसान ने जवाब दिया कि साहिब ये घोड़ा पाँच हजार का हैं। कृष्ण के प्यारे ने कहा नहीं! मैं तो इसके छ: हजार दूंगा। किसान बहुत खुश हुआ कि मैं तो घोड़े का सौदा पाँच हजार में कर रहा हूँ और ये छ: हजार रूपये दे रहा हैं। इससे अच्छी बात ओर क्या हो सकती हैं। थोड़ी देर रुकने के बाद फिर कृष्ण के प्यारे ने कहा नहीं! इसके मैं सात हजार रूपये दूँगा। किसान ओर भी ज्यादा प्रसन्न हुआ और सोचा कि कैसा पागल इंसान हैं, मैं इसे इस घोड़े के पाँच हजार मांग रहा हूँ और ये कभी छ: हजार दे रहा तो कभी सात हजार।*
थोड़ा समय ओर रुकने के पश्चात कृष्ण के प्यारे ने फिर किसान से कहा नहीं! मैं तो इसके पूरे आठ हजार रूपये दूंगा। इस घोड़े की कीमत असल में आठ हजार रूपये ही लगती हैं तो किसान की आँखों में से आंसू बहना शुरु हो गये और कहा जी साहिब सच में इस घोड़े की कीमत आठ हजार रूपये ही हैं तो कृष्ण के प्यारे ने कहा कि तुम्हारी ऐसी क्या मजबूरी थी जो तुम अपना आठ हजार का घोड़ा पाँच हजार में बेच रहे थे? किसान ने जवाब दिया कि साहिब मेरी एक जवान बेटी हैं और उसके विवाह के लिए ही मैं इस घोड़े को पाँच हजार में बेचने गाँव से शहर निकला था। फिर किसान ने कृष्ण के प्यारे से पूछा कि साहिब मेरी तो मजबूरी थी कि मुझे तो मेरी बेटी के विवाह के लिए रुपयों की जरुरत थी मगर आपकी ऐसी कौनसी मजबूरी थी जो आप मेरे घोड़े को पाँच हजार में न खरीद कर सीधा आठ हजार में खरीदना चाहते हो, तो कृष्ण के प्यारे ने जवाब दिया कि मेरी भी मजबूरी हैं। किसान ने पूछा कैसी मजबूरी? कृष्ण के प्यारे ने कहा कि मेरा कृष्ण कभी किसी की मजबूरी खरीदने को नहीं कहता हैं, वह हमें हमेशा सौदा खरीदने को कहता हैं।*
अब यदि मैं भी तुमसे तुम्हारा घोड़ा आठ हजार जो कि इसकी असल कीमत थी के बजाय तुमसे पाँच हजार में खरीदता तो मैं इस घोड़े का सौदा नहीं बल्कि तुम्हारी मजबूरी खरीदता। क्योंकि तुम अपनी बेटी के विवाह में रुपयों के लिए मजबूर थे। इसीलिए मेरा कृष्ण मुझे कभी किसी की मजबूरी खरीदने कि रज़ा नहीं देता हैं।*
अब हम भी विचार करें कि हम भी अपने जीवन में न जाने कितने लोगों के सौदे न खरीद कर मजबूरी खरीदते हैं। अक्सर हम भी जब मॉल और बड़े शोरुमों में जाते हैं तो वहाँ कि वस्तुओं को खरीदने पर मुँह माँगे दाम देकर आते हैं, क्योंकि वहाँ हर एक चीज की कीमत का टेग लगा होता हैं। यही यदि हम किसी छोटी दुकान या फुटपाथ पर बैठे लोगों के पास कुछ खरीदने जाते हैं तो वहाँ उनकी कीमत से मोलभाव करते हैं। हमें भी कभी किसी की मजबूरी न खरीद कर सौदा खरीदना चाहिए, क्योंकि हमें नहीं पता हैं कि सामने वाला इंसान अपनी दुकान या फुटपाथ पर स्वयं कि कौनसी मजबूरी बेच रहा हैं
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