बाढ़ के दौरान हुई घटना पर जिसमें एक पत्थर ने केदारनाथ मंदिर की मुख्य ढांचे को तबाही से बचाया।

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भारत में हिमालय पर्वत श्रंखला की गोद में स्थित उत्तराखंड राज्य को 'देवभूमि' कहा जाता है। यहाँ कई पवित्र धार्मिक स्थल स्थित हैं, जिन्हें देश और विदेश से बहुतांक भक्त आते हैं। इनमें से एक मशहूर स्थान है केदारनाथ, जहां हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण मंदिर स्थित है। इस लेख में हम केदारनाथ मंदिर के बारे में चर्चा करेंगे, विशेष रूप से बाढ़ के दौरान हुई घटना पर जिसमें एक पत्थर ने केदारनाथ मंदिर की मुख्य ढांचे को तबाही से बचाया।

केदारनाथ मंदिर हिमालयन श्रंखला के मध्य भाग में स्थित है और यह श्री केदारनाथ बाबा को समर्पित है। इस महान मंदिर को भारतीय धर्म की नौ महत्त्वपूर्ण चार धामों (चार यात्रा स्थलों) में से एक माना जाता है। यहाँ श्रद्धालु विशेष रूप से श्री केदारनाथ को दर्शन करने आते हैं, जो उन्हें मुक्ति और धर्मिक संसार से मुक्ति की प्राप्ति में सहायता करते हैं।

केदारनाथ मंदिर का निर्माण प्राचीनकाल में हुआ और यह एक ऐतिहासिक मंदिर माना जाता है। इसका निर्माण आदि शंकराचार्य द्वारा एक शांतिपूर्वक और पवित्र स्थल पर किया गया था। मंदिर का ढांचा सदियों से स्थापित है और यह इतनी उच्च गरिमा और महिमा के साथ मंदिर के संरचना को विशेष बनाता है।

16 जून 2013 को केदारनाथ में भीषण बाढ़ आई थी और उसी समय बादल फट गये। कहा जाता है कि केदारनाथ मंदिर से 5 किमी ऊपर चौराबाड़ी ग्लेशियर के पास एक झील बन गई थी और उसके टूटने से तेज बहाव के कारण सारा पानी नीचे आ गया। उस दौरान के मंजर को जलप्रलय कहा जा सकता है. 16 जून को रात के करीब 8 बजे थे, तभी अचानक मंदिर के पीछे ऊपर की ओर से पानी का तेज बहाव आता दिखाई दिया. यह दृश्य देखकर सभी तीर्थयात्री मन्दिर में चले गये। उस दौरान मंदिर के चारों ओर पानी का सैलाब आ गया था. प्रलय ने केदार घाटी को नष्ट कर दिया। मंदिर भी खतरे में था, लेकिन केदारनाथ के दो साधुओं का कहना है कि एक चमत्कार हुआ जिसने मंदिर और शिवलिंग को बचा लिया।

जब प्रलय आया तो इन दो साधुओं ने मंदिर के पास एक खंभे पर चढ़कर अपनी जान बचाई थी । उस दौरान दोनों भिक्षुओं ने देखा कि मंदिर के पीछे के पहाड़ से एक विशाल डमरूनुमा चट्टान लगभग 100 की गति से बाढ़ लेकर आ रही है, लेकिन अचानक वह चट्टान मंदिर से लगभग 50 फीट पीछे रुक गई। साधुओं का कहना है कि उन्हें ऐसा लगा जैसे किसी ने चट्टान को रोक दिया हो। उसके बाद उस चट्टान के कारण बाढ़ का तेज पानी दो भागों में कट गया और मंदिर के दोनों ओर से बह निकला। उस दौरान करीब 300 से 500 लोग भगवान शिव की शरण में बैठे थे।

साधु बताते हैं कि जब उन्होंने उस चट्टान को मंदिर की ओर आते देखा तो उनके होश उड़ गए, लेकिन अचानक हुए चमत्कार ने सभी को बचा लिया. कहा जाता है कि उस प्रलयंकारी बाढ़ में करीब 10 हजार लोगों की मौत हो गई थी. उस समय संरक्षित डमरूनुमा चट्टान को भीम शिला कहा जाता है और लोग उसकी पूजा भी करते हैं। कोई नहीं जानता कि वह चट्टान को काटकर कहां से आई, लेकिन इसे भगवान का चमत्कार ही कहा जा सकता है जो उन्होंने अपने भक्तों के लिए किया।



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