शनि देव और हनुमान जी



पौराणिक कथा के अनुसार ' एक बार हनुमान जी पर्वत पे बैठकर मजे से केले खा रहे थे की आचनक से शनि देव प्रकट हो जाते है | हनुमान जी से वे बोले - हनुमान जी आपके मजे के दिन गए क्योंकि में आप पर प्रवेश करने वाला हूं | हनुमान जी बोले - शनिदेव आपको मुझपे जगह मिल ही नहीं सकती क्योंकि मेरे रोम रोम में प्रभू श्री राम बसे है | शनिदेव घमंड में बोले - लगता है तुम्हे मेरे साढ़े साती का प्रकोप नहीं पता | सड़े सती के ढाई वर्ष में मनुष्य के पैर में रह कर उसे भटकाता हूं , फिर ढाई वर्ष उसके सरपे रहकर उसकी बुद्धि भ्रष्ट कर देता हूं और अंत में ढाई वर्ष उसकी जीभ में रहके सबके लिए बुरा बना देता हु | और इतना बोल वे हनुमान जी के सिर पर बैठ जाते है | शनिदेव के बैठने से हनुमानजी को सिर पे खुजली हुई तो वे बड़े बड़े पत्थर उठाकर वे अपने सिर पर रखने लगे | शनिदेव बोले - ये क्या कर रहे हो सिर पर खुजली हो रहे है तो तेल आदि लगाओ | इस पर हनुमान जी ने कहा - नही नहीं मुझे तो यही उपचार भाता है तथा फिर वे और बड़े बड़े पत्थर अपने सर पर रखने लगे | उन पत्थरों के बोझ से तले शनिदेव के प्राण निकलने लगे और अंत में आहत होकर हनुमान जी से क्षमा याचना करने लगे तब जाके हनुमान जी उन्हे छोड़ा |


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