माइक द हेडलेस चिकन (Mike the Headless Chicken)

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1945 में अमरीका के कोलरोडो के एक किसान लॉयड ऑलसेन ने खाने में चिकन बनाने के लिए एक अपने बाड़े मे से एक मुर्गे को चुना। उसने मुर्गे को मारने के लिए उसकी गर्दन पर कुल्हाड़ी मारी और उसे एक बाल्टी में डाल दिया।

लेकिन कुछ समय बाद ओल्सेन ने देखा कि वो मुर्गा सर काटने के बाद भी जिंदा था। वो चल भी रहा था और खाना खाने को कोशिस भी कर रहा था।

ये देखकर उसने उसकी देखभाल करने का फैसला लिया। वह उसे एक ड्रॉपर से दूध और पानी का मिश्रण उसके गले में डाल देता था। और कुछ मक्का के दाने पीसकर उसके गले में डाल देता था।

धीरे धीरे उसकी चर्चा हर जगह होने लगी। उस मुर्गे के तस्वीर कई अखबारो मे छपने लगी। लोग उस बिना सिर वाले मुर्गे को देखना चाहते थे। ऑलसेन ने उसके साथ कई जगह कार्यक्रम करने शुरू कर दिए। जिसमे लोगो को उससे देखने के लिए टिकट लगती थी।

उसकी लोकप्रियता के कारण ऑलसेन हर महीने 4500 डॉलर और अगर आज से तुलना करे तो लगभग 55000 डॉलर यानी लगभग 45 लाख रुपए कमा रहा था। उस समय उस मुर्गे का मूल्य 10000 डॉलर था जो आज के हिसाब से लगभग 121000 डॉलर यानी लगभग 1 करोड़ हो गया था।

उस मुर्गे को माइक द हेडलेस चिकन के नाम से जाना जाता था।

1947 में माइक की मौत हो गई।

इस मुर्गे के जिंदा रहने का जो कारण बताया गया उसके अनुसार कुल्हाड़ी से गर्दन काटते वक्त उसके दिमाग का कुछ हिस्सा बचा रहा गया। और नस में थक्का जम जाने के कारण खून भी नही बहा। जिसके कारण माइक 15 महीनो तक जिंदा रहा।

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