आखिर माता पार्वती ने क्यों काटा अपना ही सिर ?




पौराणिक कथा के अनुसार ' एक बार माता पार्वती अपनी दो सखियों जया और विजया के साथ मंदाग्नि नदी में स्नान कर रही थी | स्नान के बाद दोनों सखियों को बहुत तेज भूख का आभास होने लगा | सखियों ने भोजन के लिए मां भवानी से कुछ मांगा तब मां ने उन्हें थोड़ी देर प्रतीक्षा करने को कहा | लेकिन जया और विजया की भूख धीरे धीरे बड़ती जा रही थी और भूख की पीड़ा से उनका शरीर काला पड़ने लगा | तब सखियों ने माता से कहा की ' मां तो अपने शिशु की रक्षा के लिए रक्त भी पिला देती है तो आप तो संसार की पालक हो, सबकी भूख शांत करती हो | क्या हमारी भूख नहीं मिटेगी ?. इतना सुनते ही माता पार्वती ने बिना एक छड़ गवाए खड़ग से अपना ही सिर काट दिया काटा हुआ सिर उनके बांए हाथ में गिरा और तीन रक्त की धाराएं बहने लगीं | जिसकी दो धाराओं का रक्त उनकी सखियां पीने लगी तथा तीसरी धारा के रक्त को वो स्वयं पीने लगी | और इस तरह माता ने अपने ही रक्त से अपनी सखियों की भूख शांत की और तभी से माता के इस रूप को छिन्न मस्तिका के नाम से जाना जाने लगा |

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