वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार हनुमान जी को भूख लगी और वह अपने आसपास खाने के लिए कुछ ढूंढने लगे। कुछ देर से देखने के बाद उन्हें दूर लाल रंग का फल दिखाई दिया। हनुमान जी उस फल को खाने के लिए उसकी तरफ जाने। जब हनुमान जी आकाश में पहुंचे। तब राहु ने कोई विचित्र शक्ति देखी है। इसलिए वह भगवान इंद्र से सहायता प्राप्त करेगा। फिर भगवान इंद्र ने हनुमान जी को रोका और पूछा कहां जा रहे हो। तब हनुमान जी ने कहा कि मैं उस फल को खाने जा रहा हूं जिसके पास भगवान इंद्र ने हनुमान जी को समना की वह लाल फल नहीं बल्कि सूर्यदेव हैं, लेकिन हनुमान जी जहां वरीयता वाले थे और वह सूर्य देव की तरफ निकल गए जिससे इन्द्र देव जी क्रोधित हो गए और हनुमान जी पर बज्र से झटका कर दिया हनुमान जी धरती पर गिरने लगे तब हनुमान जी के पिता पवन देव ने हनुमान जी को संभाला और संसार की वायु की गति को रोका। इसके बाद ब्रह्मा जी और सभी ने पवन विश्व देव को योजना और हनुमान जी को शक्तियां दी। भगवान सूर्य ने हनुमानजी को अपने तेज का सौवां भाग दिया, यम ने हनुमानजी को वरदान दिया कि यह मेरे दंड से अवध्य और निरोग होगा। कुबेर ने वरदान दिया कि इस लड़के को युद्ध में कभी भी विषाद नहीं होगा तथा मेरा गदा संग्राम में भी इसका वध न कर अधिकार होगा। भगवान शंकर ने यह वरदान दिया और कहा कि यह मेरे और मेरे शस्त्रों द्वारा भी अवध्य रहेगा। इंद्र ने हनुमानजी को यह वरदान दिया कि यह बालक आज से मेरे वज्र द्वारा भी अवध्य रहेगा। जलदेवता वरुण ने कहा कि दस लाख वर्ष की आयु हो जाने पर भी मेरे पाश और जल से इस बालक की मृत्यु नहीं होगी। परमपिता ब्रह्मा ने हनुमानजी को वर दिया कि यह बालक अवस्था, महात्मा और सभी प्रकार के ब्रह्मदण्डों से अध्य होगा। युद्ध में कोई भी इसे नहीं जीतेगा। यह अपनी इच्छा के अनुसार धारण कर सकता है, जहां चाहे वहां संभव हो सकता है। इसकी गति इसकी इच्छा के अनुसार तीव्र मंदिर होगा। इस प्रकार हनुमान जी ने समस्त देवताओ से अध्भुत शक्तियां प्रपात की ।
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