अपने मन को मजबूत रस्सी से बांधे : एक प्रेरक कहानी



एक किसान के खेत में एक गाय रोज फसल चर जाती थी। परेशान होकर एक दिन उसने गाय को पकड़ लिया और राज दरबार में पुकार लगाई।

राजा ने गाय के मालिक को बुलवाया और पूछा अपनी गाय को इस तरह चोरी करने के लिए क्यों छोड़ देते हो?

गाय के मालिक ने कहा- महाराज! मेरा दोष नहीं है, यह गाय बहुत ही सीधी थी,कभी किसी का खेत नहीं खाती थी, परंतु मेरे पड़ोसी की गाय को चोरी की आदत है, उसी ने मेरी गाय को अपने जैसा बना लिया है।

राजा ने पड़ोसी को बुलवाया और पूछा- तुमने ऐसी गाय क्यों रखी है, जो दूसरी गायों को भी चोर बनाती है?

इस प्रश्न के उत्तर में पड़ोसी ने विनीत भाव से कहा- भगवन! मेरा इसमें मेरा कोई दोष नहीं है। पहले मेरी गाय बहुत सुशील थी, पर जब से नया ग्वाला उसे चराने ले जाने लगा है, तब से इसने चोरी की आदत सीखली है।

राजा ने ग्वाले को बुलवा भेजा। उससे पूछा- तूने किस तरह गाय को चोरी करना सिखाया?

ग्वाले ने कहा- श्रीमान! मेरे पास जितने चरने वाले पशु हैं, वे सब कुछ दिन पूर्व तक बड़े ईमानदार थे, भूलकर भी किसी के खेत में मुँह नहीं डालते थे, पर जब से मोती की गाय मेरे झुंड में आई हैं, तब से सब गाय बिगड़ी हैं, उसी के दुष्प्रभाव ने सारे झुंड को चोर बना दिया है।

राजा ने सोचा तब तो मोती ही कसूरवार है।

सिपाही आज्ञा पाते ही उसे पकड़ लाए। राजा ने पूछा- क्यों रे तूने गाय को चोरी करना किस प्रकार सिखाया?

मोती के पांव काँप रहे थे। उसने डरते डरते कहा- हुजूर! मैंने चोरी करना नहीं सिखाया, कुछ दिनों तक कमजोर रस्सी से से बांधता रहा, उस रस्सी को यह तोड़ देती थी और पास के खेत में चर आती थी। उसी टूटी हुई कमजोर रस्सी को मैं जोड़ जोड़ कर इसे फिर बांधता था, लेकिन दूसरे ही दिन यह फिर तोड़ देती। कई दिन तक यह क्रम चलता रहा, बस तभी से यह पक्की चोर बन गई है।

दोष मामूली सा था, इसलिए राजा ने सबको डांट फटकार कर और आगे से ऐसा ना हो चेतावनी देकर, किसान, गाय का मालिक, पड़ोसी, और मोती को छोड़ दिया गया। पर राजा को स्वयं संतोष नहीं हुआ। उसने चोरी की जड़ जानने के लिए और सारे मामले पर गंभीरता पूर्वक विचार करने के लिए बड़े-बड़े न्याय अधिकारियों की एक सभा बुलाई ।

सभा में बहुत समय तक तर्क वितर्क और विचार विनिमय होता रहा और यह निष्कर्ष निकला कि झुंड की सारी गायों को चोर बना देने का दोष कमजोर रस्सी है। यदि मोती मजबूत रस्सी से गाय को बांधता तो चोरी का इतना प्रचार होने के कारण, राज्य में जो अशांति उत्पन्न हुई, वह ना होती।

लोग अपने मन को कमजोर रस्सी से बांधते हैं, वह उसे तोड़कर हरियाली चरने चल देता है। कुछ दिनों में उसकी आदत मजबूत होती जाती है और वह पक्का चोर बन जाता है। एक चोर अपनी बुरी बात और बहुतों को सिखाता है। इस प्रकार बुराई की बेल फैलती है और संसार में अशांति का साम्राज्य छा जाता है। दुनिया को दुखों से बचाने का उपाय यह है कि, हम लोग अपने मनो को धर्म की मजबूत रस्सी से बांधें और उसे इधर उधर ना भटकने दें।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ